कोरोना से जागरूकता का ‘शालिनी प्रयास’

शालिनी दुबे का लॉकडाउन कविता संग्रह

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शालिनी ने लॉकडाउन के दौरान लोगों को इस महामारी, विशेषज्ञों द्वारा बताए जा रहे बचाव के उपायों और सरकार द्वारा जारी तमाम निर्देशों के प्रति अपने आसपास और विभिन्न माध्यमों द्वारा उनसे जुड़े लोगो को जागरूक करने के लिए रोज़ सुबह छोटी-छोटी कवितायें नियम से भेजना शुरू किया

शालिनी दुबे अनाउंसर - आकाशवाणी (आल इंडिया रेडियो)

कोरोना महामारी की वजह से हुये लॉकडाउन के दौरान शालिनी पाण्डेय दुबे ने भी एक जिम्मेदार नागरिक का फर्ज़ बाखूबी निभाया है। वर्तमान में आकाशवाणी (आल इंडिया रेडियो) मुंबई में बतौर अनाउंसर कार्यरत शालिनी दुबे एक बच्चे की माँ होने के साथ पत्रकार भी हैं। शालिनी ने लॉकडाउन के दौरान लोगों को इस महामारी, विशेषज्ञों द्वारा बताए जा रहे बचाव के उपायों और सरकार द्वारा जारी तमाम निर्देशों के प्रति अपने आसपास और विभिन्न माध्यमों द्वारा उनसे जुड़े लोगो को जागरूक करने के लिए रोज़ सुबह छोटी-छोटी कवितायें नियम से भेजना शुरू किया। आज हम शालिनी जी की इन्हीं कविताओं में से कुछ को यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं…

1. सूना कर दिया कोरोना ने गलियों को,
गुज़र जाता है वक़्त कैसा भी हो,
बस हौसले को तुम कहीं जाने न दो,
निकाल जाएगा ये दिन मुस्कान बनी रहे तो।

2. चुपचाप घर में क्वारंटीन रहा कीजिये
कुछ फैसले अच्छे भी लिया कीजिये,
वक़्त की मांग है घुटने टेक दीजिये,
21 दिनों के संकल्प को रंग लाने तो दीजिये।

3. सिर्फ 21 दिनों का तो लॉकडाउन है,
हौसले हमारे अप से डाउन हैं,
कर लिया फैसला घर पर ही रहना है,
अपना और अपनों को इस संकट से बचाना है।

4. आज जो छिड़ी हुई है ज़िन्दगी की जंग,
सर्दी-बुखार देकर करो-ना हमें तंग,
हैं बुलंद हौसले हमारे सदा संग,
कामयाबी जीत की जल्द ही लाएगी नया रंग।

5. अंधेरे को मिटाने उजाला आएगा ही,
ग़म के बादल छाँटने खुशियाँ लाएगा ही,
लिया है हमने जो प्रण वो पूरा करना है ही,
हौसला रख बस तू एक नया सवेरा आना है ही।

6. घर में रहकर खेलिए, कूदिए, पढ़िये, लिखिए,
घर से बाहर जाने का ख़्याल आए तो किनारे कर दीजिये,
कुछ दिन ही तो शेष बचे हैं घर में ही रहिये,
एक नया सवेरा आने को है तैयार,
थोड़ा सब्र तो रखिए।

7. सफर जितना ही लम्बा होता है,
थकान उतनी ही ज्यादा होती है,
आशा की किरणें तो सदा ही साथ हैं,
बस उम्मीद की लौ को जलाए रखना है।

8. सफर पूरा करना है, चाहे हो कितना लम्बा,
नहीं कम होगा विश्वास, हमने जो है ठाना,
लॉकडाउन के इस युद्ध को, है हमें जीतना,
टूटी थी लक्ष्मण रेखा एक बार, नहीं है इसको दोहराना।

9. कैद हो गए हैं लोग आज अपने ही घरों में,
झाँकते हैं कभी खिड़कियों कभी दरख्तों से,
कुबूल कर लो सभी ये नज़रबंदी,
किस मोड़ पर आकर रुक गयी आज ये ज़िन्दगी।

10. नहीं देखा कभी ज़िन्दगी को इतना करीब से,
बनाए थे जिनसे प्यारे रिश्ते नसीब से,
आज उनसे ही रखनी पड़ रही है दूरी,
ईश्वर करें मेहरबानी जल्दी,
खत्म हो जाए ये जिद्दी मजबूरी।

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