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कैथा है पोषण की खान

कैथा जंगली पादप श्रेणी का फल है। कैथा को नाम से बहुत लोग जानते होंगे पर इसका इस्तेमाल भोजन में कम ही घरों में होता है। गाँव में भी इसके पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है। कैथे का कच्चा और पका फल दोनों खाने योग्य होता है। कचा फल खट्टा हल्का…
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हरफरौरी है गुणों की खान

हरफरौरी का पेड़ आमतौर पर सजावट के लिए लगाया जाता है। हरफरौरी का पेड़ अब शहरों ही नहीं गांवों में भी कम दिखता है। आदिवासी क्षेत्रों में ये आसानी से उपलब्ध है। आदिवासी क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल भोजन में होता आ रहा है। जिन भी क्षेत्रों…
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पौष्टिकता की खान गूलर औषधीय गुणों से भी भरपूर

गूलर अंजीर के जैसा दिखने वाला फल है। ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहरी क्षेत्रों में भी अधिकतर लोग गूलर से परिचित तो होंगे पर इसका उपयोग भोज्य पदार्थ के रूप में घटता जा रहा है। हमारे व्यंजनों में गूलर के व्यंजनों की जगह धीरे–धीरे कम होती…
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नीम – लाख दुःखों की एक दवा

नीम जिसे किसी परिचय की ज़रूरत नहीं एक औषधीय पेड़ है। आपने इसके औषधीय गुणों के बारे में तो ज़रूर सुना होगा पर इसका भोजन में भी इस्तेमाल होता है। देश के कई क्षेत्रों में नीम की पत्ती, फूल, और फल का भोजन में इस्तेमाल होता है। नीम के फूल और पत्ती…
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महुआ एक लाभ अनेक

महुआ जिसे बंगाली, गुजराती, मराठी और हिन्दी में महुआ, कन्नड़-हिप्पे (hippe), मलयालम-पूनामिलुपा (poonamilupa), उड़िया-महुला (mahula), तमिल-इलुप्पाई (iluppai), तेलगु -इप्पा (ippa) कहते हैं; आदिवासियों के लिए वरदान माना जाता है। आदिवासी समुदाय…
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लसोढ़ा है औषधीय गुणों की खान

लसोढ़ा जंगली पादप श्रेणि का गाँव मे प्रचलित फल है परंतु वहाँ पर भी यह मध्यम प्रचलन वाला फल है। पके फल का ज्यादा सेवन आदिवासी और गरीब परिवारों में ज्यादा देखा गया है। इसके अलावा इसका उपयोग उन परिवारों में देखने को मिलता है जो घरेलू नुस्खों के…
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बड़हल – बड़ी समस्याओं का आसान हल

आम और जामुन के इस मौसम मे मुख्यतः गाँव में एक और फल का चलन रहता है जिसे हिन्दी में बड़हल और अन्य भाषों मे अलग अलग नाम से जाना जाता है। बंगाली -देफल दहुआ, पंजाबी – धेऊ, कन्नड़- वोते हुली, मराठी – वोटोंबे, तमिल – इलागुसम, तेलुगू- कम्मा रेगू आदि…
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